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|| ||सःवद् यतःकलोजनाःअङसाःअस्यायुषः अस्य बुडयश्च श्रोतव्यानितु बहूनि
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^. ||||भगृणन्सरः संसारान् युच्यते यनास्स.भयसमपिबिभेमि ययारसंश्रयाः युनयःदशनादेवपुनंति गगोदकानितुसेबायुनति्| |
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: ` ||| गवान् शवः बररभेणसहयाभिदीर्योणिङूनवार् तानिवद नयुकर्वव्य्ाणोङुतेःवणावसशःस्यादन आहुः धाता
ˆ ||| खातङ्यात् षष्णुपदेगेुकमाःरीपैसभमिषेणररः रथायोरव्थावसाशाःपयमरपविशाःस्पअसिन्सप्थैव हश ई ः
„ .. ||| पहि इतिअभिनेदेति अरीदुस्तरेरुरिततशच्छतानः धाक्रालंरशितः यथापुसौ सयुद्तरणेनाबिकः तहत् वित धर्ष
. - . ` ||रेश्रीरुणेअधुनाखवसरूपंपासेसतिधमः कंपति शरणे गतः त बूहि २३ इतिशरीभ्रडागवतदूणिकायाप्र ¦
ष दभाद्मरशनेसति भवति अतेःकषयःशुदावासफदेवेभक्तिङुर ति इदानी ह
एवरेश्वरः स्थियायर्थदरिषिरिदिहरेतिसंज्ाः धते तेषीमध्येवा दवा, यं
` “ ` || शिष्येरशेयति यथााघात्धूमःपदनिखभावः तस्पात् अनिःएवंपस.संका शात् रजोगुणशष्ठःतस्मात् सखयणः |
` ||| श्च अत्तलङणोषा्धीनिंभष्यमुतरोनरसुरय् अतयुयुक्षवीयनयः भगवतं क्षमाय जग रज लापय
||||प्रजेप्सवःसंतःपितृभूपादीस् रजति वासुदेव परावैदाारूदेबपरामा बासदेवपरयोगाबार दब ५
` . ||| षरलानेवासरेवपरंपपेः बासदेव परोध्ीवासरेवपगगनिः एवं भूतो भगवान् आलभाययाइद विभवं अयेससजतः ||
||पविषटसनूयणवानिवभामियरुषु भनिर्थथानथादरिःधूतेषुमानेव भाति स्यौ सादितेषु भूतेषु पधि सन् षय
|| सएवभगवा् रेवनियड.नरादिषुमेस्वस्यतासदतारःतषुभदुरकतःसन् सखरणेन सो सन् पारयति ४. इपिपथभ॥
. ||| तीयः . सूतउवाच ` संस्थञवतारकथाःशृणुत सएवभगवाम् आरीषीरषश्पं महदरं कारपंचतन्पानैः स धतम् एर
“ ||| रौगिवपचराभूतषोडशक्रंसोङभिसृक्षयाजगहे कोसौ भगवाद् अंभसिशयानस्ययस्यना( प पद्या दा ०६८ |||
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` |||विष्यःअवयपैःसवरोङाःकस्पिनाःतत् पगवनःविशुरं सपं सहख पीर ुजानने रडुतम् सहस बु पणा सन सिरजञा|
||बर्याुनयःपश्येति एतदषनानावताराणं कारणम् यस्यशंशोबद्मानस्यअशोमरीच्यादिःननभ्वादयः सल्येते सएव मगाः
शटिरूयंसमारंसर्गभाश्रिय भह्मणो भूलाबह्छवयेबतंचयारसपथमः विनी यसारर वपुः भृलारसा तगत +~
आओ-५. अद्या रीनाम्
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| -*-----^ ग ~> ~~ "अ म ४4 364 क कक व
. || सीधडु्ारनाभे येर्देया ्षो भूवा पारमहंस्य रशंयत् न
||| हीरतरान् पृीयेनारदस्पदेवर्िलंगृहीलापचरवागमं तृषाम् चतुरथेधप परायोयानरनारायणीभूखादुश्वरं तपश्च
{६ र पंचमेकपिलोभूलाभारदिनामोबराह्मणायसास्यशास्पपोवाच षेअभ्रिपल्याअनसूयाया दचानेयःसभ्यपरदहादार || '
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|| | यैमास्यस्पंपृलाचाश्ुषमवतरेमहीमच्य नाविवैवश्वनं मसु भरोप्यअपात् एकादशेक्मोभूलारवासराणायुदधिम
||| तोसतोमंदरारिपएषेदध शदशेषन्वेतरिसनआयुद पशितवान् भयोदशे मोहनी सूपभूखाअसुगान् षच ५२ धलारेवार्||| .. .
||||अमृतेअपाययत् बतुरदशेदिही भूलानसैःरिरण्यफशिपुक्षमिषिदयाः पंचदशेवामनोभूतवाभिपादभूषियाज्राखदे|| || .
||| नबलिरविरयिलास्वंररायदरी षोडशेषरफगमो भूलापएरूपिशतिवारंनिःक्ष्ोमहीअर्रेत् सपदशे पराशरन् सयव
||| यायासो भूलाअर्पपज्ञाय् पंसोर्लावेररोःशाखाःकतबार् अशदशेदाशरथीरमोभूलासपुटनियहारीमिकम्रणिङ् || : `
. ^ ||| तवान् एकोन पिशेपिशेचदृष्णिषुरामरुष्णौ भूलापुवःभारं अहर् एकि शेरली संपरतेदैयमोहनायदुदनामारकट ||
|||बभरिष्यति तरतःहापिशेकरे,अते ट्यु परायषुरजसुसस्फपिष्णु यशसःआह्मणानकस्किपविष्यति हैहिजाःहरैःऽ र
` ||||याःअवतारम्यंथासरोवरान्सदसशक्षदपराहाःनिगेच्छंनि तथाफरषिमसुदेव मनुपु्रपजापतिपभूतयः हरेः अंशाः क
||लाश्र्यः 1 अथेषोप्रयोजनपराह एतेस्व यरा पीडितंजगत् भदति तराफखयंपि
` ||| अवतःरदयजन्मयःमायंयातःपेत्सदःससंयादियुचये एतन् पगवनोस्संमायारुणेःमहदादिषिः अह्मणिअन्ञैःकस्पिन || = ~
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` ` ¢ ` | ||पतियहत्वःसगणीतनत् वरचैायसंनर्थयन्येते प्तिश्ीरे अपशब्दयुक्तेपिषासःप्योगेभगयय शःअस्तिचेत् सएववागििसर्गःत ||
`. ` ||||मेवसाधकःशृण्वंतिगायेनि गृणेतिच रिनेष्कम्येमपिन्तान भक्तिहीनं पेत् अयर्थन गोपते ुतनःरेश्परेनअपिनेदुःखस्पंका-
|| सयंक्पंशोषेत अतहैमहाभागलंयथाथषीःअमितस्मात् असखिलस्यवंधयुक्तयेभगवही ला रिस क्ये णस्पलाव्णीयं असय
. || ह्रिविषिताप् पथकर शपुसःमतिःकापिरिषयेस्थानेनरभेते यथावातेन आहतानीः तदत् शिच भारवारिषुकाभ्येरूपणिर
` . | ||आसंक्तस्यपुसमथमोर्थनदेवसम्यकपौरिङ्थयत'तवमहान् अन्यायम्यतः सरक्त धेडतिसन्वानोजन
|| |णेनिवारणनसन्यने विच क्षणःपुरषस्कं ५७ र अहतिनपरत्तिख भाव गुणैः
१. । २२ ` ५ 9, म (€-0.0411165/\511॥1 (<. 5.2811/18॥ (10181811 0५ { 2151161 | 10 \/ (1911260 2८88) ॥ 4 प ¢
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भार नेमिम् एवंष्यायतःमेडदिहरिः आविष तनःआनंदमः सन् आलानं परंचनापश्यम् नतःपरगवत दपं पश्य ४ #
५ |||सुसन् सहसारथितोस्पि पुन स पानीऽपिनापश्यम् एवं बने यतेतमा आकाशवारआह अस्मिनजयनिमा इङ ||
|| तभ्कारैगरखुकालःपरारुर भूत् ननोमरेहःअपतत् कसयनिशिषयिषोःबह्मणःसध्यं तउ न तेनसह् अहं पाबिशय् युनःकल्यारोर ||
| रंखड्भिच्छतःबह्यणःपणेभ्यःमरीव्यादयोखषयः अहदनतः सोहं शीहरेरसु यहात् कविदपिअङदगतिःसयुदेबटताबीणा
` ||| वारयन् हरिकथागायमानभअद्छांड चमामि एवंगायतःपः शनं याति ेषथिष। पुतरणेह| |
` |||रिभजनमेवपः दशःकिन्व हरिसेवथायथामनः शास्यति थायभादि रेन हैव्यासंः यु जूतड ||
वाचः . एवमाभाष्यवीणोरणयसूनाररीययो अहो अयंदेवषिःथन्यम्यतःवीणयाहःकीरविंगायन् आतुरंजगवूशमयति ३ “इ
|| ||तिपरथमेषश्ः६ शोनकडवास भारदैगतेसतिव्यासःकिमकरीत् सतवा सरखलयाःपश्ियेनरेस्वेशम्यापासै
आश्रमेवयासःआचम्योपंविष्ठःसन्मनः धयो तमःमनसिषथमं परुषंतन्यायाच अपश्यत् ययामोहितोजीवःअन थ पाञ्ति ||
| वतःअधोक्षनेभक्तियोगेच अपश्यत् एपत् सरदेरखवा एवं अजानतःरोकस्यहिताय भागवतीं संहिता चकर यस्यविशूयमाणायं
` ||| छषोपरमपूरुषे भक्तिस्यद्यतेपुसःशोकपोहजग पहा एवंसंहितो रला शकं अध्यापयामास शोनक्डवाच _ हैसूतसः
||शक सर्वन्ोपेक्षकआद्यारमोपिदमो जहती संहितोकस्यहैतीः सुतडवाच -आह्मारमाअपिसुनसण्टुरीभक्तिङु
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|||तौरोरिमि तयास्य माताङूपीमारोदीत् थैरालभिःभह्यङ्रंकोपितेतत् तैषोसातुबंधरंददमि सूतऽाच ,. एव॑षष्यन्या||
|| |्येचतस्याःवचःश्ुलाधमौदयःश्रारुष्णश्चतो पशशेसः ततमकुदोभीयआह अहौ अनेनव्य्थगारवधःरनःअनौःस्यवधए || ||
|| | वशचेयातिति भी मस्यगपयाश्चयचनेश्ुखाअजंनस्यसुखे आली स्य शरी ए रीर ह ९५९. ||
| |बह्मणोनहतव्यदतिमयैवकथितेतखतिपारय उतचस्वपतिजोमम पाँचास्याः पी ससनस्य्। भय यथात ५; 1०,
||| बाच अर्सुनपगवदभिपरायंज्ञालाअश्वथाम्मःसङे शं शिरोगतं मणिजहार ततोबईअश्वथा |
|||रात्रिःसारितवान् बपनेदविणायानंस्थानानियोपणं तथा आद्यणायपरानोअयभेवधःनदैदिदडपि तनपोडवाशपय-
||| सएवरोणःपजास्पेणासे स्यस्चीकपोभासे यतःबीरसुननत्यरेङरेपु्यदुःखयिषनार सि अपि यथाअहमृतवसा || `
, |सहशोकानोः संनःमुतवालानो ओध्ैदिकं चुः, उनिषथमेससमः० सूतउवाच्च अयतेपाडवारस्मिय रस्त ||| `` `
|| मृतानोडरकरानार्थरुष्णेनसहगेग जगुः ततःउदकंदलामिरापंब रलारसालाचप्थित् कत इुगांारेपर पथा
|मारिसहियुधिधिरेषऋषिभिः सहरूषणःकारस्यचगपि दशेयम् सा यामास ततौ थिलायुधिधिरस्यश
|ज्येसंसाध्यतिभिरभ्वमेधेपेमराजयाजयिलावय शः शतमन्यरिषरिश्ुबिसतायपाड वान् एषवाउडवसाखय।कयुतः णायन
|भिःूनितश्वशरीरूणाः हारकोगेतु रथमाशूरोह एतस्पिन्मवसरेधारतीउत्तर पातासत भा हैरषणरूणमोपाहि अर्थतसां
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शरीरष्णेआश्वरन ततःजद्यास्िनियुकैःपोडबादिभिः
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थाक्सेनरदारेवकालयासकूदिमोकिता वेथाअहन || || `
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स्यादिपियलाबाणपनयरंथन् रामृदगकेयादयभेरुःपथापासारारूलाःकुरस्मियःधरुणोदुसमेःवदषुःतराभरौनः उतजय |
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` ` |||पयललोपिहरिकुयाश्ररणाथएय अस्पिनूसमेप्रयुःआहतःअनमसत्रसमापिषयतंकोपिजनःनध्ियत अनेनश्रगवक्था || _
; : ||||अरवणावका शसूमितिः अरोहरिरुथापानं विना अस्यभस्पायुषःजनस्य आयुःरामीनिरया दिवा क्मभिःन श्यति प ;
` . |||तदरिकिथोङ्थय . सूतउवाच यदास्वदेशेकरिषविष्ठसशराय पदारथ भास्थायधुशरलासेनयादतःपर क्षित् ||
` ` ||रिप्विजियार्थपुराप् निगतिसम् भद्रपमेतुमारं भारतं वषंरसरार् युङश्चरिजियकरंजगुरे तसतयजनैगीौ यानंशखपवेषा
`, ||| यशःअश्वथाम्मोऽरूगतःस्वरक्षणंरणणिपा्थानोके शपेभशषित्शरुवासंते-सनतेष्यन्थनानियासािहारध्वदय किदपाड||
` . -[वेषुशरुष्णस्यसारथ्यारिरूपाणि शृण्वन् भिष्णीश्वरणारविदेभर्भिरूनवार् तदाएव रमेमानस्यराजञसतःयहृत्तातु य |||.
` ||| एतस्िनूरारेएकेतपराचरन् इषस्पथरः धम गोरा पृ श्वीरुदतीआरक्षय उवाच दैषदेपेअनामयरबित् यतःम्ानवद् ||
. |||नाअसिअनोभवतीअंतरा धिआरक्षये कित्व पदन्यूनं एकपारेमातथाभूयः भोश्यमाणा आदान वा शोचि व
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५९|| असुर द्तयज्ञ भागावृदेवारं शोरमि रवि १तभिःअडष्यपाणाःस्वियः पितृभिररक्ष्यमाणानूबाज सुरः ०
||| देस्थितासरस्वती गकदि व धून वाजारक्मौदयधभमिरतेजीवणोङंवा पूभारमा शाथ छतायतारस्यहू षर त
||नतेःवाशोचसिकषिमू हैवसुधरेयनलकशता'भनकारणङुथय . भर्युवाच् ₹थर यपा (तत् `, ९५०१ |||
| स्याश्रयेणलंचतुष्यार् आसीःयस्पिन् भगवति सयं शोेदयाक्षानिस्यागः संनोषजेवम् शमोदमस्तपःसाम्यनितेक्ाप् ||
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शोचामि कियस्याःपसादंबह्यार्योवा्छंनि सार्वः सगृहं कमसयनंहिखायसाद पदे भजनेतस्य भगेवत्श्रामसदेभ्रि ||
हितोअतएवगवितामाय॑भ्यक्तवान् श्वि यःयटुषुअतीयपू परारंजहार एवं मूतस्यमगयनःविरहंकवासरेत एवे पराचीस
रस्वतीलीरि पृथ्वीपयोःकथयनीः 1 ३९ ` व ६५ सूतउबा त्रसं
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श्यति ङि रीनानादुःखहरणमेवरजापरोधर्मःअतपएनंभूरेवधिष्यामि हदषव फदाय् र.भरण्वत्पंभस्पकीपिनाशङ् || , ` “
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भाप व मसावादिभिःषयबिमोहिताः अतहैगजव् खंसवबुद्ाटुःसखरानारेविचास्य एवंरकैसतिगनमोहुःसन्निश्रियउवाच | ॥ §
१९ जोषाच खंदषरूषीधमेासि यतःखंघानरजानन्नपिनसूचयरेवरूपंयमंबयीषि सजने रोप त
` . |||पिषवतिअथवाभगवन्परायायाः्गनिरगोचरा अतनोक्तवान् रिति तपःशोचंरयासलयंरतिवलारतवपादास्तचध्येभयमीशः || ` - `
` . |||स्पयसेगमरेःअयोभगनाइगनीसयरूपःएरःएवरवैरितःतमपिअधमःक रिष िच्छति विच इयंउरुभराकता भगवतः
ताचभूःमोमूदाभो श्येती निरतो शचि इनिधर्ममहीच सां खथिलाकणिह परात् सड आदरे एवाह शंपरीकिर्तदछायूप
विनहमिहायरलि.तञ्रणयोःपतितः पनःतेतथाविषं रघादयालुः सजाने अवधीत् आह्व रजौक्च हैक्येक्दाजरे||| .
||तीःतवमत्तभयंनासि परंवयामहेशैेनवतितययम् यतःखंअयमेवंधुरभि तदेबाह तिसनित
35 तन्ना ८२11
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भा । तगृगान असुगतःसन् शरंतःुधितःरषितःरं अपश्यद् अस्याशरपर वेश न |च
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॥ पेःसरंषयूनसपैषरुष्कोल्यानिधायपुरंयये यतभ्भस्यचसेःसमाधिःसयःपिश्यावाइतिभिजासयासपस्थापितःनतनस्यषु ||| .
` ||| बभ्यगीनामबासकैःसहकीइन् सन्रा्ोऽपराधंशुलाबासक्मध्यैसद भयवीत् अहोरज्ञोभयैःअयम् कादनामिष चि |||
कित अद्यकोपोथितोभनिःयेसपुरगज्यारिकंदहतुरथिंतयं स
| | ने अथरूष्णापिसेवोअधिकंगन्यमासःगजाभ्गयञ्रणनिरातायागगायोप्रायोपवे शकत वाच् तचसुक्तसमस्वसंगः
दाधिरष्योएतस्विनेते तदशनाथसशिष्याःयुनयःपापापतेचअभ्रिःवमिषभव्यवनःशरदान् अरिषनेपिभृयुःअंगिराः||| `
पराशरः विश्वाभिच्ःपरशरमःउतथ्यः इदपमद्ःरथ्पवाहमेधानिधिःदेवरः आषशटिषेणःभारहजणीतपःपियलाद्ये||
मेयःओरैःकवषःअगल्तिःष्यासःनारटःअन्येचरजषिदेवर्षिबह्षयुःएनानसवोय् भभ्यच्यैराजाषदरे सतफसौ पवि |||. `
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भाप प्रय पाणेश्वयस्छमेतरिचारयत कमेषु यागयोगनपोदानादिभिविवरपानैषुसर्फ यदच्छया गं पयरयूस्नीवाेरतःअ ९
१६. ||| वधूतवैषःनिजराभवुषटव्यासंपु्रःततरषासः तंषोडश वरपसङुमार पादायषयवंचारनेमेऽसतनासंतृल्यक्णसः्वा
। कंबुरेनिगूदजयु पृथुवक्षसंदिगंबरं वकरपिकीणे$शं परंबवाईस्वमरो्तमाभं ्यार्भर व
` ˆ. |||णन्ञायुनयःआसनेभ्यःपरयुचिताःततप्प्रीक्षिन् आगतायतस्यै शिरसासपयोमाजहार न स सुः
` (||तःसन् पहासनेरपविवेश सदेवर्षिराजर्षिबह्यिसंपेः सं रतः चदददव्यरोचत ततस्पशिन् आसान तसू लनिरिस|| `
` . ||||तयागिर भन्वप्च्छत् अरो वयं ्षमबेधवःपवरिःकृपयायोग्याःछृताःयेषोवःस्मरणाच्एसागृहाःसयः रः श्या `
. |||रशनारिभिःशखतीनियक्तव्यम् ५ योगिन् तेसानिषथ्यात् युंसोमहापापन्यपिसघःनश्यति विष्णसानिष्याद् वा|| =
` . ||| यथा पांडवानोभियःरूष्णःतयोरयथेन हयस्य पतिःखसु अन्यथामियमाणानानः दान ङुथस्याव् अतच ||
|| शरुलोषृच्छपि इहध्रियमाणस्ययर्थयच्छोतव्यंजाय्यस्प्व्यभजनीयंब् (क ||
|| हाश्रमिणोगृहेषुगोरोहनसरुसपिनर ष्यते सूतउवाच - रत्ाएवे एषम मगायू रूपया त १ || `
(1) धेचू्िंकायोर्कोनविंशोऽध्यायः१९ ५, अयस्कभःसमात | ||
` || शष भवतु ॥ ६ ` ।॥४। , ५8 ` पसा ` वभा ` चथ ` ॥॥ ॥७।॥ ॥९७॥ _ ५ |
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